किसी शिला को आधार बनाकर,
धर्म का उस पर चन्दन लगाकर,
उसे यूं ही शिरोधार्य नहीं करना|
श्वेत से उस प्रकाश में भी,
सात रंगों का संगम है|
शाश्वत सी उन नदियों का भी,
निश्चित एक उद्गम है|
जो लगे उचित सर्वदा,
दृष्टि को दे आनंद अथाह,
उस पर यूं ही आंख मूंदकर सहज विश्वास नहीं करना|
समंदर की उन लहरों में भी,
उसके आवेश की वाणी है|
विशाल, अनंत उस आकाश की भी,
अद्भुत अनेक कहानी है|
जीवन रूपी यह मरुस्थल बुनकर,
अभिलाषा की प्यास से छनकर,
महत्वाकांक्षा को यूं ही अपना सारथी स्वीकार नहीं करना|
असंभव में संभव निहित है,
असफलता में सफलता विदित है|
जब पग डगमगाने लगे तो महज़,
इस भूतल को ही दोषी करार नहीं करना|
आधुनिकता के कांधे पर बैठकर,
परंपराओं की बेड़ियों में जकड़ गर,
दोनों को एक साथ ही श्रापित नहीं करना|
हो विश्वास यदि मन में,
कोलाहल न होगा चिंतन में|
करना तू खुद पर विश्वास,
कर जाएगा यह भवसागर पार|
यदि प्रश्न चिन्ह लगे तुम पर,
आत्मसम्मान से ऊपर उठकर,
अपने अस्तित्व में उसे कभी अंगीकार नहीं करना|