विश्वास - एक अक्स!! - Achla Mishra

किसी शिला को आधार बनाकर,

धर्म का उस पर चन्दन लगाकर,

उसे यूं ही शिरोधार्य नहीं करना|

श्वेत से उस प्रकाश में भी,

सात रंगों का संगम है|

शाश्वत सी उन नदियों का भी,

निश्चित एक उद्गम है|

जो लगे उचित सर्वदा,

दृष्टि को दे आनंद अथाह,

उस पर यूं ही आंख मूंदकर सहज विश्वास नहीं करना|

समंदर की उन लहरों में भी,

उसके आवेश की वाणी है|

विशाल, अनंत उस आकाश की भी,

अद्भुत अनेक कहानी है|

जीवन रूपी यह मरुस्थल बुनकर,

अभिलाषा की प्यास से छनकर,

महत्वाकांक्षा को यूं ही अपना सारथी स्वीकार नहीं करना|

असंभव में संभव निहित है,

असफलता में सफलता विदित है|

जब पग डगमगाने लगे तो महज़,

इस भूतल को ही दोषी करार नहीं करना|

आधुनिकता के कांधे पर बैठकर,

परंपराओं की बेड़ियों में जकड़ गर,

दोनों को एक साथ ही श्रापित नहीं करना|

हो विश्वास यदि मन में,

कोलाहल न होगा चिंतन में|

करना तू खुद पर विश्वास,

कर जाएगा यह भवसागर पार|

यदि प्रश्न चिन्ह लगे तुम पर,

आत्मसम्मान से ऊपर उठकर,

अपने अस्तित्व में उसे कभी अंगीकार नहीं करना|