ज़िंदगी ने कुछ ऐसा सिखाया कि दौड़ना आ गया ,
अन्दर के दर्द को छुपाकर हसी ओढ़ना आ गया
किसी ने कहा उसे भूल जाना ही मुनासिब है,
मिले बिना ही लोगों को छोड़ना आ गया
कुछ बद-हवा सी छाई थी घर आँगन में भी,
ख़्वाबों के रास्तों को मोड़ना आ गया
प्यार कभी चाँद था नूर-ए-आफ़ताब में ओझल हुआ,
तारे हमें, उन्हें दिल को, तोड़ना आ गया
दिल इतना कमज़ोर तो नहीं कि टूटता ही जाये,
टूटा जो कई बार तो जोड़ना आ गया