जिंदगी की सीख- Chirag Sahu

ज़िंदगी ने कुछ ऐसा सिखाया कि दौड़ना आ गया ,

अन्दर के दर्द को छुपाकर हसी ओढ़ना आ गया

किसी ने कहा उसे भूल जाना ही मुनासिब है,

मिले बिना ही लोगों को छोड़ना आ गया

कुछ बद-हवा सी छाई थी घर आँगन में भी,

ख़्वाबों के रास्तों को मोड़ना आ गया

प्यार कभी चाँद था नूर-ए-आफ़ताब में ओझल हुआ,

तारे हमें, उन्हें दिल को, तोड़ना आ गया

दिल इतना कमज़ोर तो नहीं कि टूटता ही जाये,

टूटा जो कई बार तो जोड़ना आ गया