तुम्हारी ही वजह से दुनिया को मुस्कुराता हुआ दिखता हूं।
चलो यारों आज कुछ बातें तुम्हारे लिए लिखता हूं।
इन चार सालों में तुमने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया।
दुनिया खूबसूरत भी होती है, ये तुमने दिखा दिया।
मुझे आज भी याद है वो पहली गेम जो हमने साथ में खेली थी।
मुझे आज भी याद है जब उसके सामने तुमने मेरी ही ले ली थी।
तुम्हारी तारीफों में ना सच्चाई थी, ना गालियों में कोई गुस्सा था।
लोगों की तो छोटी सी कहानियां होती है, अपना तो हर रोज एक किस्सा था।
अर्जुन कहलाने के तो तुम लायक नहीं, तुम्हे दुर्योधन ही कह लेता हूं।
नही बनना मुझे श्री कृष्ण, में तुम्हारा कर्ण ही रह लेता हूं।
साथ होकर हमने समय को रुकना सीखा दिया
अरे बेशर्मों, तुमने तो मेरी अकड़ को भी झुकना सीखा दिया।
मंजिल कहां थी कोई हमारी, जो था बस ये सफर था।
घर से दूर होकर भी यारों, अपना एक घर था।
तुम हो अगर मेरे साथ तो मुझे किसी का दिल नहीं चाहिए।
अगर सफर इतना खूबसूरत है, तो मुझे मंजिल नहीं चाहिए।
आज शायद आखरी बार मुट्ठी में दिल लेकर आया हूं,
अपनी मिट्ठी गालियों से इसे साफ कर देना।
इन चार सालों में तुमने आंखों में एक आंसू न आने दिया।
मगर आज थोड़ा सा रो लूं, तो माफ कर देना।
शहर बदल जायेंगे हमारे, शायद नए दोस्त भी मिलेंगे
पर दावे के साथ कहता हूं यारों, तुम जैसे ना मिलेंगे।