पहुंच गई उस मंजिल पर , जिस पर कोई ठिकाना नहीं था ।
सोचा तो हमने बहुत , मगर वापिस नहीं आना था ।
याद आई उसकी जो मुझसे , एहतराम किया करता था।
कद्र थी मुझे उसकी क्योंकि कभी न कभी मुझे उससे दूर जाना ही था।
दिल कहता था मोहब्बत करो , मन कहता था दूर रहो,
गुम सी हो गई थी उस दुनिया में क्योंकि वापिस वहीं आना था।
ऐसा नहीं है कि जरा भी इश्क नहीं था मुझे ,
वरना हमें कहां किसी के बारे में इतना सोचना था।
मैं थी अपनी ख्वाबों में सोचने वाली,
और वो अपने ख्वाबों में लाने वाला था।
आखिर आज याद आ ही गई उसकी ,
जिसे कभी मुझे अपने सपनों में सजाना था।।
धन्यवाद ,😊