डेढ इश्क - Hemant Kumar

बीच राह मे छोड़ कर, ज़ख्म देता है, ना ज़ख्म की दवा देता है,

बार-बार सामने आकर कम्बख्त ,ज़ख्मों को हवा देता है

ना भरने दिया जख्मों को हरा ही रखा है

वह बढ़ गया आगे हमने वो मंजर सीने में दबा ही रखा है

जब जब इस मोड़ मुडा हूं मैं

हर दफा मोहब्बत में टूट कर के जुड़ा हूं मैं

शिक़ायत नहीं है जिसने तोड़ा मुझको टुकड़े-टुकड़े किया है

शिक़ायत यही है हर टुकड़े में समाया , वो मेरा पिया है

सितमगर है सनम सितम ढाने में कोई ना कसर छोड़ी है

हमने भी रंज ओ गम सहने की सारी हदें तोडी है

गिर के संभाला हु फिर से उसी राह चला हु मैं

ज़माने में ना मिलेगा वो दिलजला हूँ मैं

दर्द के साए में यूं जाँ न जलाया कर

गुजरे जमाने में तू भी गुजर जा

मुझे न याद आया कर

मोहब्बत करता है और डरता भी है

नादान दस्तूर ए मोहब्बत से गुजरता भी है

रोक देता हूं अश्को को बहाने की इजाज़त नहीं

कि अब इस दर्द के बिना जीने की आदत नहीं