नज़रिया | Isha Inamdar

लोगों की नजरें अजीब सी

हमेशा खामियां मेरी दिखाती थी

शायद समझ सका ना कोई की

वो तो मेरी बीमारी थी

हा बताया मैंने कितनों को

मैं पागल नही बीमार हूं

नहीं है मुझे सर्दी खासी और बुखार

बस दिमाग की उलझनों की शिकार हूं

ये सुनकर कुछ लोग हंसते थे

कुछ मुझसे दूर भाग जाते थे

और कुछ समझ कर भी

अनजान बन जाते थे

पर मैं कैसे कहती उन्हें

मैं अजीब नहीं बस इस दुनियां के

तौर तरीकों से अनजान हूं

इतना भी मुझे दूर ना करो

आखिर मैं भी एक इनसान हूं

फिर लगा शायद इस बीमारी का इलाज

इन्हीं लोगों में रह कर करना होगा

लोगों की नजरें बदलनी है

तो लोगों का नज़रिया बदलना होगा