कैसे भूलूं, मैं वह बचपन,
वह गौरैया का चहचहाना,
मेरे घर की मुंङेरी पर,
गाती थी वह मधुर तराना ||
चीं चीं करती मुझे जगाती,
मां भी सहज, आवाज लगातीं,
मेरे घर आंगन में फुदकती,
नन्हीं सी वो गौरैया ||
बंगले के उस नीम पेड़ पर,
कभी फुदकती कभी प्रांगण में,
गर्मी की उस तेज तपन में,
पंख डुबोती थी मटके में ||
पक्षियों के कलरव को सुन,
सुबह सवेरे हम जगते थे,
अपने अन्न ग्रहण से पहले,
दाना जीवों को हम देते थे ||
तुम्हें ना पा, अपने समीप में,
नहीं सहज, हो पाती हूँ,
गुनहगार में तुम्हरी गौरैया,
ऐसा विचार मन में करती हूँ ||
याद मुझे सब आता है,
तुम्हरा चहचहाना आवाज लगाना,
स्कूल से घर जब आती थी,
तुम्हें सहन में पाती थी ||
चावल जब मैं खाती थी,
बन सहेली आती थी,
तुमको जब ना देती थी,
चीं चीं शोर मचाती थी ||
तोता मैना चिड़िया आतीं,
जब आंगन में, मैं पढ़ती थी,
वही सहेली बन जाती थीं,
जब मैं कभी अकेली होती ||
नाराज हो गई अब मुझ से तुम,
नहीं गाना मधुर सुनातीं,
तुमको देख न, पाकर समीप
विचलित हो मन में दुख पाती ||
करूँगी प्रयास बस, आज से ही,
वापस घर ले आऊंगी,
सुंदर घोंसला टांग लिया है,
बस अब तुमको बुलाऊंगी ||
कितने प्यारे मधुर थे दिन,
अब बस बसते, स्मृतियों में,
आओ मिल एक अभियान चलायें,
नन्हीं गौरैया को फिर घर लाएं ||
ऐ! मेरे बचपन की सहेली,
अब जल्दी तुम मिलने आओ,
घोंसला मैंने टाँग लिया है,
मधुर तराना वही सुनाओ ||