गौरैया - एक मधुर तराना- Kalpana Gupta

कैसे भूलूं, मैं वह बचपन,

वह गौरैया का चहचहाना,

मेरे घर की मुंङेरी पर,

गाती थी वह मधुर तराना ||

चीं चीं करती मुझे जगाती,

मां भी सहज, आवाज लगातीं,

मेरे घर आंगन में फुदकती,

नन्हीं सी वो गौरैया ||

बंगले के उस नीम पेड़ पर,

कभी फुदकती कभी प्रांगण में,

गर्मी की उस तेज तपन में,

पंख डुबोती थी मटके में ||

पक्षियों के कलरव को सुन,

सुबह सवेरे हम जगते थे,

अपने अन्न ग्रहण से पहले,

दाना जीवों को हम देते थे ||

तुम्हें ना पा, अपने समीप में,

नहीं सहज, हो पाती हूँ,

गुनहगार में तुम्हरी गौरैया,

ऐसा विचार मन में करती हूँ ||

याद मुझे सब आता है,

तुम्हरा चहचहाना आवाज लगाना,

स्कूल से घर जब आती थी,

तुम्हें सहन में पाती थी ||

चावल जब मैं खाती थी,

बन सहेली आती थी,

तुमको जब ना देती थी,

चीं चीं शोर मचाती थी ||

तोता मैना चिड़िया आतीं,

जब आंगन में, मैं पढ़ती थी,

वही सहेली बन जाती थीं,

जब मैं कभी अकेली होती ||

नाराज हो गई अब मुझ से तुम,

नहीं गाना मधुर सुनातीं,

तुमको देख न, पाकर समीप

विचलित हो मन में दुख पाती ||

करूँगी प्रयास बस, आज से ही,

वापस घर ले आऊंगी,

सुंदर घोंसला टांग लिया है,

बस अब तुमको बुलाऊंगी ||

कितने प्यारे मधुर थे दिन,

अब बस बसते, स्मृतियों में,

आओ मिल एक अभियान चलायें,

नन्हीं गौरैया को फिर घर लाएं ||

ऐ! मेरे बचपन की सहेली,

अब जल्दी तुम मिलने आओ,

घोंसला मैंने टाँग लिया है,

मधुर तराना वही सुनाओ ||