क्षितिज- Priti Kulshrestha

मैं धरती ठहरी हुई सी

तू अंबर उड़ता हुआ सा।

दोनो एक दूसरे की चाहत में पागल ।

आसमां समाना चाहे धरती के आंचल में ,

धरती उड़ना चाहे आसमां के प्यार में।

पर!!!

प्यार बेशुमार होते हुए,

दोनो का मिलना असंभव ।

तपना होगा उनको इस तपिश में ,

जलना होगा उनको इस कशिश में।

दूर होते हुए भी,

आसमां का प्यार बरसता है ,

धरती के ऊपर बारिश बन कर ।

धरती समा लेती है उसका प्यार ,

अपने सीने में धड़कन बनाकर ।

एक चाहत दोनो की!

कभी तो मिलेंगे?

कभी तो एक होगे ? उस क्षितिज की तरह।

जहां दोनों एक दूसरे में समाए नजर आते है ।

- 💕 प्रीत दिल से 💕