अपने बदलते हैं
सपने कुचलते हैं,
बेईमान इस दुनियां में
रोज नए रिश्ते बिखरते हैं,
हर वक्त टूटा करते हैं
हर मोड़ पर सहमा करते हैं,
यही है असल जिंदगी
जहां हर रोज जिस्म जलते हैं
चुभन सी हैं यादें
घुटन सी हैं बाते,
बेखौफ होकर
हर रोज खौफ से उलझते हैं,
कदर नही जज्बातों की यहां
ये बाते जो सिर्फ कीमत की करते हैं
दहाड़ सी गूंजा करती हैं
ये गलियां नशे में डूबी रहती हैं,
खुद को शरीफ कहती हैं ये हवाएं
जो हर रोज बहका करती हैं
शोर में यहां हर शख्स रमा हैं
ना जाने कितने दिन ये खामोशी से ढला हैं।