आज गुजरती हुई नजर आईने पर क्या गिरी,
उसने मेरी मुलाकात मुझसे ही करवा दी।
यह देख मेरे मन की मंदाकिनी सुख सी गई थी,
मेरी धड़कने भी समुद्र सी लहरे उछल रही थी।
आंखों ने सवाल किया कि कौन है वो,
दर्पण के उस तरफ से आवाज आई की तुम ही हो।
मैने उससे उसका परिचय उसकी पहचान पूछी थी,
जवाब अधर पर लिए उसने नज़रे तो मिलाई पर शांत बैठी थी।
मैने अपने मन के विचार प्रकट किए,
उसने जवाब में हल्की मुस्कान पिरोई।
मैने कई कई बार सवाल किए ,
उसने सिर्फ खामोशी गाई।
आवाज़ भी नही सुनाई पर बहुत कुछ कह गई,
मेरे शरीर को शांत और मन को चूर चूर कर गई।
मैं आज बिलकुल शांत चित्त खड़ी थी,
मेरे लबों से एक ध्वनि नहीं निकल रही थी।
आज मेरी मुल्कात मेरी ही आत्मा से हो रही थी,
उसने कुछ न कहा पर बहुत कुछ बोल गई थी।
पहली बार मैं खुद से मिल रही थी,
इस ब्रह्माण्ड में आज मैं पूरी होती दिख रही थी।