बादलो से भरे शहर में वो धीरे से चलके आई
सामने खडे इंसान को देख वो हल्के से मुस्कुराई
देख बेटी की ये हालत पिता के सीने में चल गए छूरे
पूछा उसने बेटी से तुम यहां क्या कर रही हो छोडकर अपने सपने अधूरे
सुनकर पिता की बात बेटी होश में आई
आपबीती याद कर रोने लगी बताने की हिम्मत ना जुटा पाई
देख बेटी की यह हालत पिता को खुद पर आया तरस
क्यों वो बेटी को बचा ना सका यही सोच वह भगवान पर पडा बरस
क्यों मेरी बेटी इस हालत में मेरे पास आई
क्या किया था हमने कसूर जो इसे ऐसी मौत दिलाई
सुन उस पिता की बात रब वी रो पडा
जो इंसानियत पर था उसे थोडा विश्वास था वह भी खो पडा
हमने तो धरती पर फूल सी बच्ची दी थी
मां का सहारा पिता की लाडली बेटी थी
बडे थे सपने इरादे नेक थे
पर उसके सपने को तोडने के लिए राक्षस भी अनेक थे
सामने खडे भगवान से जब लडकी ने आंख मिलाई
एक ही सवाल मन में आया क्या लडकी होने की मैने इतनी बडी सज़ा चुकाई
क्या था मेरा दोष जो मैं इस तरह तडपाई
जिन लोगो ने ली है मेरी जान क्या चुका पाएंगे वो मेरे दर्द की भरपाई
सुन उस लडकी की बात भगवान हो गए मौन
सोच में पड गए कि इसके गुनहगारो को सज़ा देगा कौन
सुन बेटी की ख़बर मां अंदर से टूट गई
एक बेटी ही थी सहारा आज वो भी छूट गई
खाली था आँगन सूना था चौबारा
यही सोच कर सो गई कि बेटी के कातिलो को सज़ा देने के लिए भगवान जन्म लेंगे दोबारा।