और तुम कहते थे बेटी बचाओ -Shruti Dagar

बादलो से भरे शहर में वो धीरे से चलके आई

सामने खडे इंसान को देख वो हल्के से मुस्कुराई

देख बेटी की ये हालत पिता के सीने में चल गए छूरे

पूछा उसने बेटी से तुम यहां क्या कर रही हो छोडकर अपने सपने अधूरे

सुनकर पिता की बात बेटी होश में आई

आपबीती याद कर रोने लगी बताने की हिम्मत ना जुटा पाई

देख बेटी की यह हालत पिता को खुद पर आया तरस

क्यों वो बेटी को बचा ना सका यही सोच वह भगवान पर पडा बरस

क्यों मेरी बेटी इस हालत में मेरे पास आई

क्या किया था हमने कसूर जो इसे ऐसी मौत दिलाई

सुन उस पिता की बात रब वी रो पडा

जो इंसानियत पर था उसे थोडा विश्वास था वह भी खो पडा

हमने तो धरती पर फूल सी बच्ची दी थी

मां का सहारा पिता की लाडली बेटी थी

बडे थे सपने इरादे नेक थे

पर उसके सपने को तोडने के लिए राक्षस भी अनेक थे

सामने खडे भगवान से जब लडकी ने आंख मिलाई

एक ही सवाल मन में आया क्या लडकी होने की मैने इतनी बडी सज़ा चुकाई

क्या था मेरा दोष जो मैं इस तरह तडपाई

जिन लोगो ने ली है मेरी जान क्या चुका पाएंगे वो मेरे दर्द की भरपाई

सुन उस लडकी की बात भगवान हो गए मौन

सोच में पड गए कि इसके गुनहगारो को सज़ा देगा कौन

सुन बेटी की ख़बर मां अंदर से टूट गई

एक बेटी ही थी सहारा आज वो भी छूट गई

खाली था आँगन सूना था चौबारा

यही सोच कर सो गई कि बेटी के कातिलो को सज़ा देने के लिए भगवान जन्म लेंगे दोबारा।