आज बेबसी ने बेबाक़ी को घेरा है,
आज उजाला भी क्यों लगे अँधेरा है,
है इंसानों ने इंसानों पर फंदा कसा,
और अमन को लाल रंग में रंगा,
आज लाठियों से गूँजी अराजकता है,
आज उजाला भी क्यों लगे अँधेरा है,
है चुप्पी में भागेदारी मना,
हाथों पर हम सब के है ख़ून लगा,
आज जनतंत्र पर कलंक बनी निराशा है,
आज उजाला भी क्यो लगे अँधेरा है,
है हैवानियत ने इंसानियत पर शिकंजा कसा,
अभिव्यक्ति और सुरक्षा का है सवाल बड़ा,
आज संवैधानिक आदर्शों को याद रखना है,
आज उजाले को नहीं बनने देना अँधेरा है।