मुझे यकीं है कि तुम मेरी कही गई बातों को दोहराओगे | Sumant Pratap Singh

तेरे मेरे बीच में एक लखीर खेंच दूं तो कैसा रहेगा,

चंद पैसों के लिए अपनी कविताएं बेच दूं तो कैसा रहेगा,

माना कि तुम दौलत से आंकते हो लोगों की मेहनत को,

लेकिन मैं अगर तुम्हारे सब इनाम खुदमें समेट लूं तो कैसा रहेगा,

इतना आसां नहीं होता एक कविता बनाना,

पहले खुद को समझाना फिर उसी एक सोच में अपना दिमाग लगाना,

कलम जब बगावती हो तब खुद से ठन पाती है,

आंसू,क्रोध,मोहब्बत,और नाराजगी हो तब एक कविता बन पाती है,

खैर तुम्हें इससे क्या, तुम तो ये सब खरीद सकते हो,

किस्मत तुम्हें क्या मात देगी, तुम तो हारे हुए को भी जीत सकते हो ,

मगर हर शायर पैदाईशी गुलाम नहीं होता, किस्से उनके भी सुनाए जाते हैं जिनका कोई नाम नहीं होता,

मुझे यकीं है कि तुम मेरी कही गई बातों को दोहराओगे,

पर सवाल यह है कि क्या तुम इन पर अमल कर पाओगे,

मैं तो बेनाम हूं, और शायद बेनाम ही रह जाऊंगा,

अगर रही खुदा की रहमत मुझपर तो कलम से कभी किसी के काम आऊंगा,

इसी तरह मैं हर रोज अपनी सोच को आवाज देता हूं,

और शायद यही करते-करते मैं एक दिन मर जाऊंगा

पर वादा है, तुम जब भी इस बेनाम शायर को पढ़ोगे तो सोचने पर मजबूर हो जाओगे,

मुझे यकीं है कि तुम मेरी कही गई बातों को दोहराओगे....