रेडियो - Sumit Dubey

रेडियो, ये मेरा पहला प्यार है,

और मैं इसके बेहद करीब जाना चाहता हूँ।

कुछ गुनगुना

कुछ गुदगुदाना

कुछ भुनभुनाना चाहता हूँ

आवाज़ से आगाज़ करना चाहता हूँ

दबी कुछ ख्वाइशों की फ़रमाइश करना चाहता हूँ

स्वर जो निकले उससे, बदलाव चाहता हूँ

आवाम में एक नयी जान और रोशनी लाना चाहता हूँ

जो रक्त के हैं रिश्ते, वे रिक्त हो गए हैं,

जिंदगी की आपा-धापी में, जबरदस्त खो गए हैं

उन्हे जोड़ना चाहता हूं,

कुछ सुनाकर, कुछ बताकर

तुमको तुमसे मिलाना चाहता हूं,

मैं रेडियो के करीब आना चाहता हूँ

लिख कर पड़ कर भाव व्यक्त हो जाता है,

कुछ समझ में आता है, और कुछ सर के ऊपर से निकल जाता है।

लेकिन सुनकर, समझाकर, समझकर मन - मुग्ध हो जाता है,

सुकून मिलता कि

उनके लफ्ज़ो को तशरीफ़ लेते सुना

उनकी आवाज़ को सुना,

उनके अलफ़ाज़ को सुना

उनके अंदर के इंसान को सुना

उनके अंदाज़ए बयां को सुना - उनको सुना

और

सुनने से मन को बहुत शान्ति मिलती

मैं मैं के करीब आना चाहता हूं,

इस दरमियान जो फासले है उन्हे खत्म करना चाहता हूं

मैं रेडियो के करीब जाना चाहता हूं,

अपने प्यार को पाना चाहता हूं।