बचपन के वो दिन भी क्या खुभ थे।
ना कोई चिंता, ना कोई डर।।
बेफिक्र होकर रहा करते थे,
घर से बहाना बनाकर खेलने चले जाते थे।
हर किसी के साथ घुल-मिल जाया करते थे।।
बचपन के ख्याल जिद्दी थे बहुत।
ना किसी के आने का खुशी, ना किसी के जाने का गम।।
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम।
ये उन दिनों की बात हैँ, जब बच्चे थे हम।।
अब तो समय के साथ-साथ, बचपन के यादो भी ढूंडला सा हो गया।।
बड़े होते होते छोड़ आये वो बचपन।
बीत गए वो बचपन के दिन,
अब तो वो बचपन लोठने से रहा।।