इंतिज़ार
कभी कभी मंज़िल इंतिज़ार कराती है
हमसे मिलने मे थोड़ा ज्यादा वक्त लगाती है
इस इंतिज़ार के क्षण मे खुद से भरोसा खोता है
सपना अधूरा रहने का डर सा होता है
कभी आखें रोती है, कभी हिम्मत टूट जाती है
पर फिर खुद को खड़ा करने की बारी आती है
इंतिज़ार के क्षण मे थोड़ा ज्यादा लड़
ईश्वर तेरे साथ है इस बात पर भरोसा कर
कभी कभी वक्त सही नही होता है
क्योंकि अपने राही का इंतिज़ार तो मंज़िल को भी होता है