विचलित हो जाती है नारी,
कई रात न सो पाती है।
जैसे जैसे उनकी बेटियां
कुछ बङी हो जाती है।
जरा, सम्भल कर चलना बेटी
इतना ही कह पाती है।
पर मन के अंदर है कितना डर
कहाँ उसे बतलाती है?
स्कूल, काॅलेज, हाॅस्टल भेजकर
कहाँ चैन ले पाती है?
जरा सा देर हो जाने पर
कई बार फोन लगाती है।
रेप, फरेब, दरिन्दगी की बाते सुन कर
हर बार कांप सी जाती है!
कभी चीखती, कभी सिसकती
कभी मौन रह जाती है।
विचलित हो जाती है नारी
कई रात न सो पाती है....