है हम भुलक्कड
बहुत कुछ
भूल गये है,
लेकर जिदंगी को सीरियस
हंसना भूल गये है,
है खुद के अंदर
छुपा एक बच्चा,
बाहर
उसको लाना भूल गये है,
भायी ऐसी
क्या महानगर की जिदंगी,
गाँव अपने जाने वाले
रास्ते भूल गये है,
हो गयी
पैसे कमाने की चाह इतनी
अब
रिश्ते निभाना भूल गये है,
मचा रखी है
मन में इतनी उथल-पुथल
नींद
रातों की भूल गये है,
जी लेते है
अब किसी के बिन
पूरी जिदंगी,
उसकी याद में
आँसू
बहाना भूल गये है,
हो गये है
रंग बदलने में माहिर,
होकर इंसान
बस
इंसानियत भूल गए है।