Rehnuma | Kanchi Arora

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

ओ रहनुमा

कम क़हर ढा,

यूँ मुँह ना मोड़ मेरे खुदा!

तेरे बन्दे

ग़लत,

ग़लतियों के पहाड़ पैरों तले रोंदते

आगे बड़े,

बेपरवाह, बेग़ैरत हो

मौजों के बादलों में शरम उड़ाते चले..

ग़र हैं तो तेरे ही वो बच्चे?

जो धूलों को उड़ाते

ठोकरें खाके,

खाकों में ऐसे मिल रहे

जैसे मुशक़्क़त से हासिल पेयशानि पर वो बूँदें,

जो गिरते ही ख़ाक में थककर बेनिशां

सो गयीं

ना अब एब ना वो नशा।

चीखें सुन!

वह अधमरा इंसाँ देख!

उस लाश पे सोयी वो बदहवास मासूम

यूँ आँखें ना पलट!

यूँ चले ना जा!

यूँ दलीलें ना मोड़!

यूँ अर्ज़ियाँ ना ठुकरा!

ऐ रहनुमा

कुछ होश में आ

अपनी नवाज़िशों से परे ना कर

यूँ सिफ़र ना बना!