बारिश | Kavita Batra

जम के बरस जाना बारिश,

रंजिशें को अब तो खत्म कर जाना बारिश ,

बेहिसाब हुए हैं यार के दीदार पर चर्चे,

अब अपनो के दिल का मैल भी साफ कर जाना बारिश।

तेरा दूर से बरसना ,

मेरे तक पहुंच जाना ,

और मुझे फिर भी भिगो जाना ,

कभी आंखो से बहते हुए आंसुओं को भी पोंछ जाना बारिश।

तेरी तारीफ करूँ मैं,

जब भी तू बेहिसाब बरसती है ,

लेकिन जब भी बरसती है,

अपनी मर्ज़ी से ही बरसती है ,

जब भी कभी मेरे शहर में बरसे तू ,

मेरी भी मर्ज़ी से तू बरस जाना बारिश।