वो दिन | Kumari Pooja

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

ना चाहते हुए भी याद आ जाती है।

वो दिन…

मानो एक घटा सी छायी थी,

तमिस्त्रा की चादर व्योम पर आच्छादित थी।

और दिन की भांति;

न मोर नृत्य करते हुए प्रतीत हो रहा था..

न भंवर गुनगुनाएँ ..

न पुष्प खिलखिलायें…।।

एक अदृश्य दामिनी हृिदय में

बडी़ स्त्तब्धता से कौंध रही थी।

सवाल जो अबतक शाांत थी,आज मुखर हो गई थी ।

शब्द अनगिनत थे.. पर होठ दगाबाज़

दृश्य प्रत्यक्ष थी, पर आंखें मानने को तैयार नहीं।

जिसे वर्षों में बनाया , उसकी क्षणभंगुरता

हिय में शूल की तरह लग रही थी।

जो बची हुई चेतना थी चित्त में कही खो गई थी।

और ये सब जो हो रहा था; वास्त्तव मे

और जो मन की भाव थी; की ये नहीं होना चाहिए था,

इन भावों के समीकरण के बीच एक संग्राम सा चल रहा था।

वैसे उस क्षण में, सब कुछ बिख़र रहा था ,

उलझ रहा था, टूट रहा था,

छूट रहा था…और बहुत कुछ हो रहा था,

मेरी अल्फ़ाज़ों के पहुंच से दूर।

जिसे लिख न सका और

न शायद लिख सकूंगा...

क्योंकि मुसलसल चलती सांसों के बीच

अपनी जिंदगी तलाश रहा था,

ख़ुद ही की आंखों के सामने

ख़ुद की मौत से गुज़र रहा था।।