श्री राम की गिलहरी- एक हितोपदेश | Manvi Chaudhary

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

छोटी हूँ तो क्या हुआ, मैं तो प्रभु की प्यारी हूँ।

श्रम करने के बल पर, आज उनके मन को भाई हूँ।।

सेतु के निर्माण में प्रभु की सहायता का सौभाग्य, आज जाकर मैं पाई हूँ।

भाग्यवान समझती हूँ खुद को, जो काम उनके मैं आई हूँ।।

छोटा ही सही, पर बड़े काम की प्यारी सेवा, का हिस्सा बन पाई हूँ।

जितना सामर्थ्य है, उसके सौ प्रतिशत पर आज पहली बार पहुँच पाई हूँ।।

जानूँ न बल, बुद्धि, विद्या, केवल श्रम करना समझ पाई हूँ।

जितना समझ आया है, जीवन में उस दिव्य ज्ञान को उतार पाई हूँ।।

क्यूँ इंतज़ार करूँ बलवान बनने का, जब सेवा का मौका सामने ही देख पाई हूँ।

ये जो छोड़ा उत्तम बनकर करने की चाह में, तो ऐसा दिव्य मौका गँवाने से फिर मैं कहाँ बच पाई हूँ।।

पड़ी रहूँ जो तामसिकता में यह सोचकर की मुझमें क्या काबिलयत है, तो कहाँ रामायण जैसे महान ग्रंथ में उल्लेख मैं तब पाऊँगी।

युगों युगों तक बद्ध जीवों को प्रेरित करने का अवसर, फिर मैं कहाँ दोबारा अपनाऊंगी।।

छोड़ के आलस का साथ, मैं तो प्रभु सेवा को ही अपना परम धर्म बनाऊँगी।

वो जो रखें ध्यान मेरा तो, अपने सब काम मैं उनके एक इशारे पर होते पाऊँगी।।

जब मेरे द्वारा रखे पत्थर पर प्रभु के चरण कमलों का स्पर्श पाऊँगी, आनंद से प्रफुल्लित होकर संतों के साथ अपने अनुभव को मैं भी तब बाँट पाऊँगी।

आज जो मन की सुनकर कदमों को पीछे हटाऊंगी, प्रभु की नज़रों में मान फिर कैसे मैं पाऊँगी।।

कष्टों का स्मरण कर जो बुद्धि की बात को ठुकराऊंगी, न जाने कब माया की चपेट में मैं तब फंस जाऊँगी।

ऐसे दिव्य अवसर की महत्ता को जो मैं नहीं समझूंगी, अवसर जितने मिलें इसके बाद सबको फ़ीका ही मैं फिर पाऊँगी।।

देख और पढ़ सकें जो आप मेरे भाव इस कलियुग में, संदेश मेरा स्पष्ट है केवल इन दो शब्दों में।

छोटा हमारा शरीर नहीं बस सोच हमारी छोटी होती है, मैं नहीं कर सकता ये तो केवल चंचल मन की वाणी होती है।।

मन से परे जब जानें हम खुद के सामर्थ्य को प्रभु से जुड़कर, पहचानें तब हम प्रभु की कृपा से खुद की दिव्यता को फिर ध्यान से समझकर।

सच्चे हृदय से मेहनत करना ही प्रभु की दृष्टि को आप तक लाएगा, सोचते रहे जो सामर्थ्य नहीं तो फिर प्रभु कैसे हमें देख पाएगा।।

क्यूँ आप विचलित हो जाते हो अपने अभाव को देखकर, वो उपयोग क्यूँ नहीं कर पाते जो आपके पास है प्रभु का उपकार जानकार।।

रोती मैं भी यदि अपने अभाव को लेकर, तो क्या पहुंचा पाती मैं अपनी वाणी को इस संसार तक।।

भौतिक जगत में न होते हुए भी मैं आज अमर हूँ, क्यूंकी सही समय पर सही काम करने में मैं सक्षम हूँ।

क्या कर्तव्य है क्या नहीं, इसकी मैं ज्ञाता थी, ज्ञान को जीवन में उतार पाना बस यही मेरी सफलता की गाथा थी।।

मुझमें तो भाषा का ज्ञान भी नहीं था, पर मेरे आचरण की शुद्धता ही मेरे प्रचार प्रसार का साधन था।

जब मैं ये सब कर पाई तो आप तो कितने सक्षम हो, मानव जीवन होते हुए भी आप क्यूँ इतने अक्षम हो।।

छोड़ दिया जो यह सुनहरा अवसर, तो बाद में फिर पछताओगे।

तामसिकता में जो पड़े रहे तो वक़्त का पहिया हमेशा घूमता ही पाओगे।।

फैसला आपको स्वयं है करना, काम था मेरा आपके मार्ग को प्रशस्त करना।

क्यूंकी चलने का काम तो आपको ही पड़ेगा करना।।

डर की क्या बात है, जब प्रभु आपके साथ है।

उनके आश्रय में तो हर निंदा और उपहास, केवल एक निमित मात्र है।।

उठो जागो और जानो, खुद के असीमित सामर्थ्य को।

क्यूंकी प्रभु की इस विरासत का खज़ाना केवल मनुष्य मात्र के पास है।।