सभी को पता था ज़मी किसकी थी
सभी को पता था कब्ज़ा किसका था
किसी ने सही का साथ ना दिया
कहीं ख्वाबों, कहीं इंसानों का
कत्लेआम हुआ l
ये बात ना कश्मीर की है,
ना आज़रबाइजान की है,
ना तिब्बत ना ताईवान की है
कहाँ कहा यूक्रेन की है
नहीं कहा फिलिस्तीन की है
सुनो, ये बात ना आदमजात की है
ना भूत भविष्य वर्तमान की है
ये बात ज़मीन की है l
ज़मीन जो कुदरत की है,
पर कब्ज़ा बस इंसान का है l
ज़मीन दरख्तों पर बैठे परिंदों की है,
कब्ज़ा तो इंसान का है,
हक स्याह रातों में फैली चांदनी का भी है,
कब्ज़ा ना जाने क्यूँ सिर्फ इंसान का ही है l
हक तो गिली डंडा, गेंद बल्ले का भी है,
कब्ज़ा तो फ़िर भी बस,
भरी तोपों और गूँजती बंदूकों का ही है l
हक़ क्या बच गया जो तेल ज़मी मे उसका भी है?
या धुआँ हुआ हक़ उसका जो गाड़ियों में जल गया?
हक़, सुनो तुम, ख़ाक हुए ख्वाबों का भी है,
पर कब्ज़ा आज फिर, सुनो तुम,
खून सनी हकीक़त का ही है l