सफ़र | Nitin Srivasava

तुमको देखा था इक सफ़र में मैंने

हमसफ़र कई यूँ ही राह में मिलते हैं

क्या बताऊँ उस घड़ी की दास्ताँ

दिल में कई गुल बहार के खिलते हैं।

तेरी आँखों में जो कशिश देखी मैंने

होश का दामन बिखर गया मेरा

तेरे क़दमों के जो निशाँ देखे मैंने,

धड़कनों का जहाँ निखर गया मेरा।

अहसास-ए-मोहब्बत का हर्फ़ तुमने,

अपनी बातों से मेरे दिल पे लिख दिया,

दिल को अफ़सानों की आदत सी हुई

अपना नाम तुमने काग़ज़ पे लिख दिया।

मैंने चाहा था कि मोहब्बत करूँ तुमसे

मैंने समझा था कि ये ज़ियारत है मेरा

मैंने सोचा था कि किताबत करूँ तुमसे

मैंने माना था कि ये मुक़द्दर है मेरा

मगर क़यामत नसीब में ऐसी निकली

तेरी ज़ुल्फ़ -ओ- आरिज़ नहीं मिला मुझको

तेरा साया तेरी निगाह का ये सितम

तेरे हुस्न पे क़ाबिज़ नहीं मिला मुझको

ग़म की तमन्ना अब नहीं लेकिन मैं

हिज्र की रातों में अकेला भी नहीं हूं

इश्क़ की हसरत लिए चल रहा हूँ पर

वस्ल की राहों में तुम साथ भी नहीं हो।