वैश्या! | Roopali Thakur

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

शशशश!

नाम मत लेना कुछ ऐसा काम है मेरा,

सुना है जो आया मेरी चोखट बदनाम है वो सवेरा।

हाँ हूँ मै एक वेश्या!

औऱ जिस्म को बेचना काम है मेरा।

दिख जाऊँ जो अपनी गली से कहीं बाहर,

तो लोग पूछ बैठते हैं आपस में!

कि शरीफों के मोहल्ले में क्या काम है मेरा?

समझा न कोई शायद न कोई समझ पाएगा,

जो मेरे पास आता है वो मर्द कहाँ बदनाम है तेरा?

मुझे भी इज़्ज़त की जन्दगी जीने का शौक था,

था मुझे भी ख़ुश रहने का हक!.

पर कुछ मजबूरियां थी मेरी,

औऱ शायद पता भी न था मुझे इस जिंदगी का सच,

जब कुछ लोगो ने पकड़ कर,

मुझे इन गलियों की दीवारों में दिया था रच।

हाँ हूँ मै एक वेश्या!

चाहत थी मेरी भी कि हो एक छोटा सा आशियाँ,

था मुझे भी शौक खिलौनों का।

उम्र कहाँ थी मेरी कि समझ पाती क्या गलत? क्या सही?

जब तक समझा ये सबकुछ मुझे बहुत देर हो गई।

हुई चाहत मुझे भी सच्ची मोहब्ब्त की,

था ख्वाब मेरा भी कि किसी के साथ घर बसाऊंगी।

पर न जाने कौन सी ऐसी गलती हुई,

कि मेरी सारी खुशियाँ जिस्म फरोशी में बदल गई।

हाँ हूँ मै एक वेश्या!

मैंने भी अपने अरमानों को अपने हाथों से जलाया है,

क्योंकि पल-पल शरीफ़ों की दुनियाँ वालो ने,

मुझे क्या हूँ मै? ये एहसास दिलाया है।

कुछ ने सिर्फ मेरी गलियों में आकर दिल को बहलाया हैं,

हाँ कुछ महान ऐसे भी हुए,

जिन्हों ने मेरी खूबसूरती को देख कर सहानुभूति को बखूबी दिखया है।

हाँ हूँ मै एक वेश्या!

रूह तक कांप जाएगी जब सुनोगे सच मेरा,

मैंने भी कभी सपनों की रात के बाद चाहा था खुशियों का सवेरा।

कभी सोचा है? कोई नहीं चुनता ऐसी रहा,

जिस पर बन जाता हैं हम लोगो का रैन बसेरा।

बदनाम हुई हूँ मै थूका जाता है मुझ पर,

ये कोई नहीं समझा कि जब होता है उजाला सारी दुनियाँ में,

तो हमारी गलियों में क्यों रहता है अंधेरा?

हाँ हूँ मै एक वेश्या!

अब सिर्फ लेती हुन साँसे मै,

कभी जिंदगी को हंसी के साथ जीने का अरमान था मेरा।

शशशश!

नाम मत लेना कुछ ऐसा काम है मेरा,

सुना है जो आया मेरी चोखट बदनाम है वो सवेरा।

हाँ हूँ मै एक वेश्या!