ज़िंदगी और मैं | Sukhdeep Singh

क्यों इम्तिहान ले रही है ज़िन्दगी, परेशान है क्या

अपनों को तोड़ रही है, मोड़ रही है, नादान है क्या

और भी हैं कई मुद्दे हमें सताने के लिए

अपनों को यूँ आज़माना, आसान है क्या

क्यों रातों को आजकल तुझे नींद नहीं आती

किसी गैर के साथ है, या किसी की याद है सताती

तेरा दोस्त ही तो हूँ, मुझसे बात तो कर

या फिर, ये दर्द, ये आंसू, तेरा सामान है क्या

बहुत मुद्दत हुई, तुझसे ठीक से बात नहीं हुई

मसरूफ थी मुझे सताने में, कभी मुलाक़ात नहीं हुई

ये भागना, ये दौड़ना, ख्वाब देख उन्हें तोड़ना

मुझसे दूर रह कर जीना, किसी का फरमान है क्या

आ पास बैठ, साँस ले, अपना हाल तो बता

खुल के बात कर, पर्दा हटा, राज़ तो बता

सब्र कर, हौसला रख, हिम्मत न छोड़

वक़्त बदलेगा, एक जैसा रहना उसका काम है क्या

तू मुझस है, मैं तुझसे हूँ, जानती है न

इस रिश्ते को समझ, हम एक हैं, पहचानती है न

चल फिर दोस्त बनते हैं, मुस्कुराते हैं, साथ चलते हैं

इन सैलाबों को पार करना, कोई मुश्किल काम है क्या