नज़र को मेरी एक
तेरी नजर मिल गई
रफ्ता रफ्ता
जिंदगी हसीन हो गई।
नज़र ही नज़र में
कुछ ख्वाब जन्मे
तिनका तिनका कर
आशियाने के तार जुड़ गए।
नज़रों को हमारी
किसी की नजर लग गई
आशियाने के तिनके में
किसी ने तीली रख दी।
अपनी ने ही मारी थी
पहली फूक
धू धू करके
प्रेम हवेली जल गई।
अफ़सोस के लिए भी
इजाजत नही दी
गरम राख पर ही
दूसरी नींव रख दी।
दुश्मन बना दिए गए
एक दूजे की जान के
मलमल में लपेटकर
लोग खंजर भी दे गए।
जिस बगीचे में खिले थे
वो फूल प्यार के
कुछ लोग उसमे
पलास के फूल बो गए।
आज भी रो रहा है
वो दरख़्त जिस पर
सिर रख कर हमने
ख्वाब बुने थे।
जिंदगी तो चल पड़ीं थी
गनेश आज भी वही खड़े थे
किसी पंछी ने डाले होंगे
बीज उस दरख़्त के कोटर में
दो नन्हे पौधे आज फिर
झाक रहे थे।
लेखक
गनेश पटेल