अब और - और अब- Amogh Kant Mishra

अब और किससे तबियत बतलाएं हम,

अब और किसपर आँसू बहाएं हम,

अब और किसने हमसे पूछ लिया,

अब और किसे जवाब दे आएं हम?

अब और किसने हमें देखा हो,

अब और किसने फूल फेका हो,

अब और उसे किसने कुचल दिया,

अब और किसने मन सेका हो?

अब और कैसे सब सांझा करू,

अब और कैसे मैं रांझा बनु,

अब और क्या किस्मत का लेखा है,

अब और क्या गीत-बाजा करूँ?

और अब मैंने सब जाने दिया,

और अब बस हवा आने दिया,

और अब कोई गली पकड़नी नहीं,

और अब सब दर्द बह जाने दिया।

और अब क्या आलम हैं उनके,

और अब कौन है कहानी में उनके,

और अब मैं उसमे किरदार नहीं,

और अब नहीं मैं चुटकुले उनके।

और अब चाय भी ज़्यादा गर्म लगे,

और अब चारपाई भी खाली नर्म लगे,

और अब नज़र में केवल काम बसे,

और अब लगे तो उनको शर्म लगे।