कहना चाहूं मैं कितनी बातें
ऐसे ही, यूं ही
बेवक्त,बेवजह
काम-काज छोड़ के
बातें करे हम बैठ के ।
अच्छाई नहीं तो,
किसी कि बुराई करे ।
फिर चाहे वह बाते,
निष्करण की करे ।
कभी मोहल्ले की हरी टंकी
तो कभी काली, सफ़ेद गिने ।
तो कभी चींटियों की बारात देखें ।
दुल्हन तो नखरे वाली हैं
और बेचारा दूल्हा सीधा-साधा हैं।
बुआ जी के श्रृंगार तो देखो
और फूफा जी का ठाट ना पूछो।
दुल्हे की बहन और
दुल्हन के का भाई का
अलग ही अवलोकन चल रहा हैं।
लगता है अगले लग्न में
इनकी ही बारी हैं।
अरे! अरे! छोड़ो यह सब,
जयमाल शुरू हो गया हैं।
फूल मोगरे का है
नहीं- नहीं चमेली के हैं।
अरे भाई दोनों ही फूल हैं।
शायद! खाने का
कार्यक्रम शुरू हो गया
क्या बात करती हो तुम!?
अभी तो फोटो-सोटो होगा।
हां हां चलो हम
भी करवा लेते हैं।
अच्छा रूको-रूको थोड़ा सा
वास्तविकता में शामिल हों।
घड़ी में समय तो देखो २:५६ हो गया।
अब हमें चलना चाहिए
किसी और दिन
ये प्रोग्राम होना चाहिए।
अरे हां वे दोनों
नये प्रेमी जोड़ा है ना
उनकी शादी साथ देख लेंगे।
और हां उसको
पूरा देख के ही जायेंगे।
आगे मैं अगले
लग्न का इन्तजार करू।
किसके घर कितनी नयी टंकी
उसे गिनने का प्रतीक्षा करु।
लिखा करू,बोला करू यूं ही
ना जाने
कहना चाहूं मैं कितनी बातें ।