अतीत के पन्नों पर
जब फिर से दस्तक दी मैंने
चिंख उठा ये मन मेरा, पर
मेरी आवाज ना सुनी किसी ने
बरसों से समाज में
चली आ रही उस
कुप्रथा का हिस्सा हूँ मैं
हां हां देवदासी हूँ मैं
धर्म के नाम पर पुरोहितों
ने किया मेरा शोषण
छीन लिया मुझसे मेरा
हसता खेलता बचपन
आज भी काँप उठता
रोम रोम मेरा, चीखकर
चीखकर ये कहता है
आज भी आँसू इन आँखों से बहता है
सभ्यता का नकली चेहरा
भगवान के नाम पर हमपर पेहरा
तोड़ भी नहीं सकती इन जंजीरों को
जगह जगह बैठा है आज भी लुटेरा
थी कभी, भगवान की पत्नी
आज मैं सबकी हवस मिटाती हूँ
देवदासी से नाम बदलकर
आज मैं वैश्या कहलाती हूँ
यही सच्चाई है मेरे जीवन की
धर्म के नाम पर शोषण होनेवाले
उन दलित समाज के बेटियों की
आज भी किलकारियाँ गूंजती है उनकी
पर समाज के इन अंधभक्तों ने
हमें भगवान के सहारे छोड़ दिया
और खुद को महान कहनेवाले
महंत ने हमारा अंग अंग निचोड़ दिया
जहन चिल्लाकर कहता है मेरा
आज भी वक्त है सुधर जाओ
बरसों से चली आ रही कुप्रथा से
बहुजनों की बेटिओं को बचाओं