अपराजिता- Meena Khan

अपराजिता

ये फौज है, हमारी जान है, हमारी शान है। जब खबर मिली वो नहीं रहे, हमारी तो दुनिया उजड़ गयी ,पाँव तले जमीन खिसक गई, जीवन व्यर्थ सा लगने लगा। खुद को सँभालना मुश्किल हो गया . अंतिम विदाई आँसुओ से नहीं, गर्व से देना, उनका ये कहना सच हो गया।

एक फैसला और आज हो गया, उनकी वर्दी को अपना जिस्म बना लूँगी, व्यर्थ न जाये ये बलिदान' उनकी जगह को अब मैं भरूँगी। छोड़ के श्रृंगार, अब वर्दी का श्रृंगार मैं करूँगी,

बहु से बेटी बन कर फौज में, मैं लडुगी । फैसला ये सुन सब दंग रह गये, कैसे करोगी ? तुम्हारे बस का नहीं है। तुमने तो होश खो दिये। फर्क नहीं पड़ा, तिरंगे में लिपटा शरीर जो आपका था, बस एक फोन घुमाया और ये ऐलान कर दिया- मैं सेवा में आना चाहती हूँ। वहाँ से सकारात्मक रुख पाकर, मनोबल बढ़ गया,

तैयारियां शुरु करने लगी मैं, जंग के लिये फौलाद बनने लगी मैं, कमज़ोर के लिये प्रेरणा बनने लगी मैं, वर्दी पहन उनके करीब रहने लगी हूँ मैं जमाने से लड़कर खुद खड़ी हूँ मैं, जो कहते थे तुमसे न हो पायेगा अब तो कहने लगे तुमसे ही हो पायेगा, शब्द बदलने लगी हूँ मैं । "लाचारी बेबसी से गर्व का जीवन जीने लगी मैं, अपने हीरो जैसा बनने लगी मैं, सेना का अहसास बच्चों को देनी लगी हूँ मैं। अपनी सौतन को खुद पहनने लगी हूँ मैं, शहीद विधवा से लेडी कैडेट बनने लगी हूँ मैं। कड़ी ट्रेनिंग से निखरने लगी हूँ मैं, आपके साथ होने का अहसास करने लगी हूँ मैं। एक फौजी की पत्नी हूँ मैं, हर परिस्थिति का सामना करने लगी हूँ मैं, देश के लिये बार-बार प्राण दे सकती हूँ मैं, प्रेम को अलग पहचान देती हूँ मैं।

ऐसा कदम उठाकर, हज़ारों बेबसों को बल देती हूँ मैं, शहादत को आपकी, एक और फौज देती हूँ मैं एक गौरवशाली इतिहास की साक्षी बनती हूँ मैं, मैं कुछ भी नहीं, ये सब आपकी देन है, प्रेम आज भी आपसे बहुत बहुत करती हूँ मैं, और अपनी अंतिम साँस तक करती रहूँगी मैं..