बिखरा हूं मैं पर रेत नही,
दफन हूं मैं पर शव नही,
मौन हूं मैं पर मूर्ख नही,
छोटा हूं मैं पर निर्बल नही,
धरती मे समाया बीज हूं मैं,
धरती मे समाया भविष्य हूं मैं।
धरा के भीतर अस्तित्व खोकर,
अस्तित्व का भाग बनना है मुझे।
अंधेरे , एकाकी को टटोल,
उजालों को पाना है मुझे।
आज नही दृष्टि मे जिनकी,
कल खोजेंगे सहारा मुझमे ही।
वक़्त लेके पनपना है मुझे,
आँधियों मे तटस्थ रहने के लिए।