जिन्दगी | Shubhra Srivastava

आज फिर रूठी सी है जिन्दगी

फिर से सूखी सी है जिन्दगी

बहुत कुछ है पास उसके

‌फिर भी टूटी सी है जिन्दगी|

जवाब मांगती रही सबसे,

अपने होने का एहसास मांगती रही सबसे

पर फिर भी छूटी सी है जिंदगी

इन रातों के अंधेरों में कहीं गुम सी है,

लगता है फिर से उन काले बादलों के बीच कहीं छुप सी गई है जिंदगी|

उम्मीद का कफन अोढ जीने चली है अपनी हर एक सांस ,

अरे, जरा सुनो तो, आज चमकदार मोती सी है जिंदगी

ना जाने कब इस उम्र को नजर लग जाए यह सोचकर थोड़ी सहमी सी है जिन्दगी

उम्र का क्या है वह तो एक अंक है,

यह जानकर चुलबुली सी है जिंदगी|

कभी बच्चों से लड़ती है तो कभी प्यार में पड़ती है

ऐसी है यह नटखट जिंदगी|

उम्र का तकाजा हो और साथ हो बुढ़ापे की लाठी,

लेकिन फिर भी वह सहारे को तरसती है जिंदगी|

पल भर जी कर कुछ एहसास में खो जाए

दिलों में अमर होकर यह दुनिया छोड़ जाए

आज जाना के कैसी है यह जिंदगी|