दिल की बात | Sumit Prasad

शाम-ए-ग़म को शाम-ए-ग़म क्यों

रात क्यों नहीं बोलते

मोहब्बत में पड़े लड़के को बर्बाद क्यों

आबाद क्यों नहीं बोलते

प्यार की बातों को लंबी घाट क्यों नहीं बोलते

रोने की सिसकियों को दिल की बात क्यों नहीं बोलते

कितनी दफ़ा पूछोगे पानी

अब इस ग्लास में शराब क्यों नहीं घोलते

पुरानी तस्वीर को देख कर मुस्कराने को

हवाई मुलाक़ात क्यों नहीं बोलते

सूरज और चांद की चुप्पी को

मुज़ाकरात क्यों नहीं बोलते

परिवार की ढूंढी लड़की को पत्नी क्यों

इंतिख़ाब क्यों नहीं बोलते

और मोहब्बत के इज़हार को मोहब्बत की शुरुआत क्यों

अज़ाब क्यों नहीं बोलते