पंछी हूं पर पंख नहीं
पिंजरे में हूं पर क़ैद नहीं
आजाद हूं अपनी सोच से
आसमां की तरह जिसका अंत नहीं
पर मेरे सपनों पर हैं
बंदिशों की जंजीरें
फिर भी मैंने अपने सपने को
हैं मजबूती से पकड़ा
मां कहती हैं कि मुश्किलें भी तो
हैं जीवन का एक हिस्सा
पर ये भी सच हैं कि
अपनों ने ही तो हमको
हैं आगे बढ़ने से रोका
करते हैं प्यार, चिंता भी पर
पंछी को उड़ने से रोका हैं
फिर भी हूं मैं कोशिश में
क्यूंकि हर पल हैं एक नया मौका
मेरे सपने भी होंगे सच
कुछ वक्त बेशक लग जाए
इन जंजीरों को तोड़
मुझे अपनी कहानी है लिखनी
आसमां छूना मेरा मकसद नहीं
ज़मीं पर पांव के निशा ही हैं काफी
खुद की पहचान है बनानी
अपने सपनों का सफ़र बस हैं बा़की।