आदत है | Anjaan Ehsaas

तू बिजली अपनी चमक दिखा ना दिखा,

मुझ बादल को बार-बार टकराने की आदत है।

तू नज़रो से अपनी कब तक मारता जायगा,

मुझ मौत को बार-बार जिन्दा होने की आदत है।

तू मंज़िल राह की रानी कितनी भी दुर दिख,

मुझ मुसाफिर को उमर भर चलने की आदत है।

तू मेरी जिन्दगी को औराक़-ए-परेशां जैसे भिखेर दे,

मुझ कातिब को सिमेट के लिखने की आदत है।

तू परिन्दा किस सरहद की मजाल बांध दे,

मुझ शजर को वफा निभाने की आदत है।

तू लाख कोशिशें करती रह अन्धेरा करती रह,

मुझ चिराग को रोशनी देने की आदत है।

तू इन्कार करती रह बातें बनाती रह,

मुझ भूलकड को याद दिलाने की आदत है।