ये माकन अब घर ना रहा,
साथ रहते हैं मगर एक छत ना रहा।
नजाने कितने लम्हे छोड़ आये हैं,
सायद किसी अपने को पीछे भूल आये है।
ये माकन अब घर ना रहा,
साथ रहते हैं मगर एक छत ना रहा।
पहले हवा भी हर एक कमरे से गुज़र ता था।
साथ बैठा करते थे जो,
हर एक कमरा अपना लगता था।
अब कमरों के साथ अपने भी बट गए हैं।
अलग अलग मंज़िल पे रहते हैं सब,
अब अपने भी पडोशिओं सा लगने लगे हैं।
ये माकन अब घर ना रहा,
साथ रहते हैं मगर एक छत ना रहा।