THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.
वो जो उसने कुछ बेहतरीन लम्हात गुजारे थे अपने मकान में..अब वो सारे लम्हात किसी पुरानी हिकायत की तरह वक्त के समंदर में कहीं खो से गए हैं जिसे वो दोबारा जी नहीं सकता बस वक्त के रास्ते में चलते हुए मुड़ कर और ठहर कर उस दौर को बस टाक सकता था...
काश के "वो" फिर उस वक्त के कंधे पर अपना बोझ रख कर सुकून से सो पाता...
क्या "वो" उन बागीचे के पौधों की शाख को उसी कुरबत से निहार पायेगा जिस बागीचे को उसके पिताजी ने पासबान बनकर बड़े ही शिद्दत से संवारा था ठीक उसी तरह जिस तरह पिताजी ने अपने बच्चों को संवारा था और क्या वो उसी बागीचे की मिटटी से फिर अलग-अलग आकार बना पायेगा जिस तरह वो अपने बचपन में बनाया करता था अपने प्यारे बहनों और भाइयों के साथ...वही बहन और भाई जिसके बिना वो ख्वाबों वाला सफर अधूरा ही रह जाता...
काश के "वो" फिर से उन दीवारों के दाररों को हिमायत दे पाता जो कि उन दाररों के बावजूद भी एकदम सीधी खड़ी रहती थी...दरसल वो दीवारे उसे यह समझा रही थी कि ज़िन्दगी के राह में दरारे आते रहेंगे और उसी दाररों को लेकर हमें आगे बढ़ते रहना है...
क्या "वो" फिर से दिन और रात का फर्क कर पायेगा जिस तरह वो बचपन में किया करता था...अब तो दिन कब अपना आग बुझा देता है और रात कब अपनी काली चादर चीन लेती है कुछ गुमान ही नहीं लगा पाता...
काश "वो" फिर से उस शमा को जलते हुए देख पाता जिस तरह माँ जलाया करती थी अपने अंधेरे मकान को रोशन करने के लिए...दरसल वो शमा उसे यह बताना चाह रही थी कि जिस तरह वो जलते जलते खो जाती है दूसरों के ज़िन्दगी को रोशन करते हुए...ठीक उसी तरह उसका भी वजूद वक्त के दश्त में कहीं खो जायेगा...
उस मकान में एक अयातकार कमरा भी था जिस कमरे में माँ के आते ही वो रसोईघर बन जाता था और वो अपने आप में पूरा मकान था जहाँ माँ बड़े ही शिद्दत से अपने पकवान के नुस्ख़े में थोड़ा प्यार, थोड़ा दुलार और बहुत सारी इनायत के साथ हम बच्चों के लिए सपने बनाती...
आज जब "वो" अनजान सहर में अपने सिफर वाले दफ्तर से वापस लौट ता है तो फलक में परिंदों को देख कर यह सोचता है कि परिंदे भी आफ्ताब के डूबने के बाद अपने घोंसले की और चले जाते हैं...और एक "वो" जो बस अपने किराए के मकान की और बढ़ते चला जा रहा है...
आज "वो" किराए के मकान में बैठ कर बस फलक को निहारता चला जा रहा है और यह सोच रहा है कि अगली दफा जब वो अपने मकान जायेगा तो सारे लम्हात को अपनी यादों की झोली में भर लेगा और वक्त की डोरी से बाँध कर फिर से अपने किराए की मकान की और रवाना हो चलेगा...