रिश्ते नाते बिखर गये सब
मतभेदों के बाज़ार में।
घर की ख़ुशियाँ सिसक रही हैं
टूटते परिवार में।।
यादें पुरानी टंगीं रह गईं सब
घरों की दीवार में।
माँ पिता बहा रहे आंसू
काबिल बेटों के प्यार में।।
आत्मीयता कराह रही
वर्चस्व की स्पर्धा में ।।
सहोदर भी अब हो गये शामिल
एक दूजे की निंदा में ।।
मत भूलो है ये कुछ नहीं
सिर्फ़ अहम का टकराव है ।
समय रहते यदि ना चेते तो
ये मानवता का बिखराव है।
धन संचय तो कर लोगे पर
एक दिन पछताओगे।
जब अपने भीतर अपने को ही
स्वयं अकेला पाओगे।।
छोड़ दो इस अहंकार को
कुछ कहना ,कुछ सहना सीखो।
सभी रिश्तों को गले लगा लो
मरने से पहले जीना सीखो।।