ठहरो कुछ देर | Gaurav Bhatnagar

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

थम गयी है ख़त्म ना होने वाली दौड़

सोचा ना था कि ऐसा भी आ सकता है एक मोड़

सर्व शक्तिमान को एक सूक्ष्म ने दिया है तोड़

क्या प्रकृति सिखा रही है अब रहना है दिलों को जोड़?

शांत है गगन और चुप है धरा...

शांत है गगन और चुप है धरा...

नज़रें घूमाईं तो देखा मुन्नी के चित्रों में है जादू भरा...

ना जाने ये सब कब रचा, मैं तो सदा ही रहा थका थका

सुना आज देर तक चिड़ियों का संगीत...कह रहीं हैं...

मुस्कुराओ, ये वक्त भी जाएगा बीत

साँसों को भी अपनी आज छुआ,

साँसों को भी अपनी आज छुआ,

पता चला इनकी गहराइयों में ही तो है जीवन दर्शन छुपा

कहाँ कहाँ हो आया मैं ढूँढते तुम्हें, अब लगता है मुझ जैसा कोई मूर्ख ना हुआ

माँगता रहा तुमसे रोज़...मंदिर और गिरजाओं में रहा था तुम्हें खोज

अलमारी में सदा से रखी वो सबसे छोटी गीता की किताब

यूँ ही आज उठा ली और मिल गया जीवन का सार

सच है यूँ ही तो नहीं उठाया है आपने सृष्टि का भार

थम गयी है ख़त्म ना होने वाली दौड़, शायद ज़रूरी ही था ये मोड़

गहरी काली है यह रात, गहरी काली है यह रात,

पर नयी सुबह से पहले सिखा रही है एक ज़रूरी बात

ख़त्म हो नफ़रत, सिर्फ़ प्यार बढ़े,

ख़त्म हो नफ़रत, सिर्फ़ प्यार बढ़े

प्रकृति माँ है, मत दो उसे ज़ख़्म गहरे

ठहरो कुछ देर, जानो तुम कौन हो

रोटी का यंत्र नहीं, तुम रचेयता का पुरस्कार हो

ठहरो कुछ देर, जानो तुम कौन हो

तुम ही हो ब्रह्म और तुम ही अवतार हो...

जीवन आनंद का तुम ही समागम हो

ठहरो कुछ देर, जानो तुम कौन हो