परछाइयाँ | Ishan Vyas

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

दीवारों पर तारीख़ों की तस्वीर सी परछाइयाँ

मीमार के अरमानों की रसीद सी परछाइयाँ

आफ़ताब ने भी बनायी है अपनी एक दुनिया

रोज़ ब रोज़ के इनक़लाबों में ठहराव सी परछाइयाँ

रहती हे ज़माना समेटे आस पास मेरे

खलवातों में मूसलसल खामोशी सी परछाइयाँ

ढूँढो जब तुम जब सितारों में क़िस्मत के इशारे

पास होगी हक़ीक़त की झांकी सी परछाइयाँ

कुछ अधूरी ख्वाहिशों का एक सैलाब ही था वो

जो नज़र आयी आज उसकी शक़ल सी परछाइयाँ

कितना हसीन है वो जो एक तसव्वुर है ‘दर्वेश’

गूमां लबरेज़ हक़ीक़त में उमीद सी परछाइयाँ