लॉकडाउन: एक ख़ूबसूरत हादसा | Ishant Gaba

COVID का टाइम और लॉकडाउन का माहौल

सब डरे सहमें घर में बैठे

जैसे जग सारा हो एक दूसरे से रूठे।

रात का टाइम था और as usual tinder का साथ

लड़कियों को लेफ़्ट राइट स्वाइप करके ख़ुश होते मेरे जज़्बात

एकदम से पढ़ी नज़र एक लड़की पे जिसको देखा था कल छत पे बाल सुखाते अपने घर से

छलकायी उसने अपनी लटें कुछ इस तरह कि दिमाग़ से नहीं निकल पा रही थी वो तब से।

किया मैंने भी राइट स्वाइप एक दम से और देखने लग गया उसकी तस्वीरें उसी वक़्त

पिघला मेरा मन ऐसा उसे देख चाहे सोचा था सुबह ही कि बनना है अब ज़ाकिर भाई जैसा सख़्त

देखते ही देखते टिंडर से कब इंस्टाग्राम और इन्स्टा से कब वॉट्सऐप पर आ गए पता ही न चला

बातें होने लगी इस क़दर कि एक ही जगह पे सुबह होती और पता ही नहीं चलता कि कब सूरज ढला।

अब सुबह उसके गुड मॉर्निंग के मैसेज से होती और रात गुड नाइट से

और हर दुपहर किसी न किसी बहाने से उसे देखते रहना अपनी छत से

ऐसी आदत लगी उसकी कि अगर न आया हो उसका गुड मॉर्निंग का मैसेज तो सुबह ही मानो होती नहीं थी

जिसका इंतज़ार पूरी ज़िंदगी भर किया मैंने मानो वही थी।

उसके और मेरे घर की दूरी चाहे थी चार गलियों की

पर उसको एक बार देख के गले लगाने को मन करता था

कई बार तो ऐसे लगे की खड़ी है चार कदमों पे

पर मिलने को जैसे पूरा जनम लग सकता था।

अब इंतज़ार करना मुश्किल हो गया था क्योंकि फ़ोन पे बात करते हो गया था डेढ़ साल

देखा तो उसको हज़ारों बार था पर फिर भी न हुआ था अभी उसकी ख़ुशबू का एहसास

आया फिर वो दिन जब मानो कि भगवान ने सारी दुआएँ सुन ली हों

लॉकडाउन हटने की ख़बर सुनते ही दोनों ने मिलने की ख्वाहिशें जैसे बच्चों की तरह दिमाग़ में बुन ली हों।

किया फिक्स दिन और टाइम मिलने का वो अच्छी सी रोमांटिक कॉफ़ी वाली जगह पे

आज न जाने कितनी देर बाद मिलना था सुकून इन बांहों को उनको गले लगाने पे

टाइम था चार बजे का पर मैं पहुँच गया था दो बजे सारी तैयारी करने

सजावट फूल गिफ़्ट में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी मैंने और जैसे ही चार बजे इन आँखों में लगे ख़ुशी के आँसू भरने।

साढ़े चार का टाइम हुआ और वो उतरे बस से कॉफ़ी शॉप के सामने

मानो उनकी आँखें कह रही हो सॉरी उलझा रखा था काम ने

फ़ासला अब सिर्फ़ एक सड़क का था जो पार करके सुकून को मिल जाना था

पर क्यों नसीब में मेरे उनका सिर्फ़ और सिर्फ़ दिल ही पाना था।

मुड़ के देखा उनकी तरफ़ तो आँखें पड़ी नीचे सड़क पे

एक गाड़ी तेज़ आते मार गयी उनको बस एक धड़क में

मैं भागा उनकी तरफ़ से और चिल्लाया इतनी ज़ोर से

क्यों मेरी ही मोहब्बत को बाँधा था इतनी पतली डोर से।

पहली बार इतनी शिद्दत से कुछ पाने की कोशिश की थी मैंने

पर वो भी मुझे ना मिला

रही मेरे पास तो सिर्फ़ अधूरी मोहब्बत और अधूरी तम्मना उनको गले लगाने की

रह गया अधूरा वो भी सिलसिला।

उनकी आँखें थी मेरी तरफ़

और मेरी रुह अपने बिछड़ते सनम में

मैंने गले लगाया उन्हें कुछ इस तरह

कि मोहब्बत ले गई मुझे भी उनके पास अगले जनम में।