कभी जो नारी होती थी सब पर भारी
अब क्यों कोशिश करती है बनने को बेचारी।।
कब तक बेचारी बन दुनिया को बहकाना हैं
नारीवाद के नाम पर और कितने मासूमों को फसाना है।।
दुशासन घोषित कर दिया उसने कितनों को
पर वो खुद द्रौपदी ना निकली
चीर स्वयं त्याग कर
पलभर में अबला बन निकली।।
डर तो इनसे बनता है क्योंकि इनके साथ जनता है
थोड़ा रोना धोना इनका सारा काम बनता है।।
नारा नारीवाद का समाज में
फैला रहे ये नफरत बिना किसी बात के
कर रहे है गुमराह इस कदर की
ना निकल सकोगे इससे पूरे जीवनकाल में।।
बुद्धि भ्रष्ठ समझे खुद को श्रेष्ठ
बिना किसी बात के
गलत बता दो इन्हें चिल्लाए ये
बिना किसी बात के।।
नारीवाद के नाम पर हर किसी को थप्पड़ मारेगी
खुद इल्जाम लगाएगी और खुद कानून बनायेगी।।
वो औरत है वो गलत नहीं,सरेआम तमाशा बनायेगी
तुम एक भी जवाब दे दोगे वो दस धारा लगवायेगी।।
मार खाओ तुम,जेल जाओ तुम,बेकसूर हो सर झुकाओ तुम
झूठे आरोपों के चलते न्यायलय के चक्कर लगाओ तुम।।
कब समझोगे नारीवाद है खुद को पंख लगाना
ना की काट दूसरों के उनको घसीटना।।
बस लड़की हो जाने से तुम हमेशा सही नहीं होती
समानता में सब बराबर है लड़का-लड़की अलग नहीं होती।।
जो सच में दबी हुई है उनकी कोई बात नहीं करता
उनको हक दिलवाओ जिनकी अब भी कोई नहीं सुनता।।
कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो चल दो ना
हक की लड़ाई कहकर बेफिजूल झगड़ों ना।।
बहानों के पल्लू पीछे छुपना है आसान
मांगते नहीं यहां कमाते है सम्मान।।