मंज़िल होगी हासिल तुझे | Nisha Gautam — Wingword Poetry Prize

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मंज़िल होगी हासिल तुझे | Nisha Gautam

लौ जलाकर आंधियों में तू उजाला करता चल,

मंज़िल होगी हासिल तुझे, उम्मीदों का प्याला भरता चल।

याद रख यह हौसलों से बनती नई कहानी है,

जो करेगा नव निर्माण, उसकी अमिट कहानी है।

ऊर्जस्वित हो उठ खड़ा तू, अविजित, दुर्जेय है तू।

छोड़कर मन की कसक को, तू ठसक से बढ़ता चल।

मंज़िल होगी हासिल तुझे , उम्मीदों का प्याला भरता चल।

मत निहाल हो एक विजय पर, युद्ध अनेक अभी लड़ने हैं।

कर वरण अपनी पराजय, अशनि- घात अभी सहने हैं।

तेजस्वित हो उठ खड़ा तू, जनसंकुल का नीरव बन तू,

बिन पाथेय, बिन संबल के तू तड़ित-गति से बढ़ता चल।

मंज़िल होगी हासिल तुझे, उम्मीदों का प्याला भरता चल।

करता रहा क्यों व्यर्थ क्रंदन,अब लगा मस्तक रक्त-चंदन।

तू नहीं मुनहसिर किसी पर और नहीं अनाधीन है।

इस बयाबान का तू स्रष्टा, तू ही वृक्ष गझिन है।

होगी विजय अभिराम तेरी , असि-घातों को सहता चल।

मंज़िल होगी हासिल तुझे, उम्मीदों का प्याला भरता चल।

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