जन मानस की कलम से - Narendra Kumar Shinde

तुमसे मिलने हरदम मेरा दिल घबराया रेहता है

तुमसे मिलने हरदम मेरा दिल घबराया रेहता है

जब जाता हॅू द्वार तुम्हारे, द्वारे से भगाया जाता हॅू

जिस रस्ते से तुम आऐ हो उसी से होकर आया हॅू

जिस रस्ते से तुम आऐ हो उसी से होकर आया हॅू

तुम जा पहॅुचे राजमहल मे, मैं फुटपाथौं पर रेहता हॅू

जो जा पहॅुचे राजमहल मे चढ़कर मेरे कांधों पर

जो जा पहॅुचे राजमहल मे चढ़कर मेरे कांधों पर

आज उन्ही के दरबारों मे, अपनी पहचान बताता हॅू

कैसी शादी कैसी बिदाई अभी किधर आज़ादी है

कैसी शादी कैसी बिदाई अभी किधर आज़ादी है

गौने पर जो चूड़ी रखी थी, कहॉ छुड़ा मैं पाता हॅू

आज़ादी के घाव भरे हैं अभी हमारे जिस्मो पर

आज़ादी के घाव भरे हैं अभी हमारे जिस्मो पर

देख तुम्हारी चिकनी चमड़ी, मैं दंग दंग रेह जाता हॅू

पंचतारा होटल में बैठकर दुश्मन का देते मॅूह तोड़

पंचतारा होटल में बैठकर दुश्मन का देते मॅूह तोड़

ऐैसे देश के सपूतों को, सरहद पे देखना चाहता हॅू

कैसी होली कैसी दिवाली तुम खेलो रंग और फाग

कैसी होली कैसी दिवाली तुम खेलो रंग और फाग

सरहद पर दुश्मन चौकस है, मै गोली मारने जाता हॅू

कैसे गीत लिखॅू सुंदरी पर गीत मुझे नहीं आते हैं

कैसे गीत लिखॅू सुंदरी पर गीत मुझे नहीं आते हैं

जन गण मन और वन्दे मातरम्, बस दो ही गीत मैं गाता हॅू

ये दो ही गीत मैं गाता हॅू ।