समाज सेवा | Purnima Bhatia

THE FOLLOWING POEM WAS SELECTED IN WINGWORD POETRY PRIZE 2023 LONGLIST.

सुना था, देखा था, जिन्दगी ऐसी है पर सोचा ना था, कि अपनी भी ऐसी ही हैं। जब पी रही थी सुपं, तब जाना जिन्दगी के हैं कितने रूप जिस सोच, विचार कर इसको लिखा, उसी तरह कर दिया विदा

ना कर सके अलविदा करके भी विदा, सुना है जिन्दगी है 'जिन्दा दिली का नाम, पर कुछ ही लोग कर पाते है ऐसे काम। भगवान भी भरोसा करता उनपे जो करते राम-राम।

जब दिया ऐसी बातो पे ध्यान, बट गया मेरा ज्ञान

बन गई मेरी एक नई पहचान' जिसे मैं समझती हूँ सम्मान।

फिर माँ-बाप ने भी कहा पूरे कर दिए तूने हमारे अरमान।

तभी दोस्तो ने कहा मैने समझा, दिया है भगवान ने मुझे बहुत बड़ा बरदान, मतदान लोगों ने किया, पता 'चला बन गई मैं राजनैता, अब पूर्णिमा करणी समाज सेवा ।