THE FOLLOWING POEM BY SATYA DEO PATHAK FROM LUCKNOW WON THE THIRD PRIZE IN WINGWORD POETRY PRIZE 2024- SUMMER CYCLE, REGIONAL CATEGORY.
क्या था समय?
पूछो ना हमसे।
जिंदगी थी, खुलके हंसी थी,
था वो बचपन।
ना कोई गम , ना ही कमी थी।
थी ख्वाहिशें कम ना मगर,
खुशियों में लेकिन ना कोई कमी थी।
तितली पकड़ना, चांद को छूना,
जिसकी मनाही,
बस वो ही था करना।
अंधेरे से डरना,
दामन में मां के सिमटना।
आया है शेर, कहके डराना,
बहला के फुसला के मुझको सुलाना।
जो था सुकून,
अब वो मिलता कहां?
मखमल के बिस्तर पर भी,
नींद आती कहां?
क्या था समय?
पूछो ना हमसे।
जिंदगी थी, खुलके हंसी थी,
था वो बचपन,
ना कोई गम ,ना ही कमी थी।
जो भी बुलाता, दिल को लुभाता।
जो भी सताता, उसको दौड़ाता,
नन्हा था कद, ना कोई ताकत,
हौसलों में लेकिन ना कोई कमी थी।
अगर कोई चाहे मुझको जो छूना,
मां मेरी ढाल दिखती खड़ी थी।
मां में ही सिमटी थी मेरी दुनिया,
मां ही मेरी जिंदगी थीं।
जिंदगी थी, खुलके हंसी थी,
था वो बचपन,
ना कोई गम ,ना ही कमी थी।
मेरी शिकायत जो कोई करता,
मां से मेरे खरी खोटी था सुनता।
मेरी शिकायत, मेरी शरारत,
मां के लिए लाज़िमी थी।
शिकवे शिकायत कितनी अदावत,
खुशियों में भी अब दिखती मिलावट।
पल में झगड़ते, पल में थे मिलते,
मन में ना कोई सिलवटें थीं।
जिंदगी थी, खुलके हंसी थी,
था वो बचपन,
ना कोई गम ,ना ही कमी थी।
ABOUT THE POET
Satya Deo Pathak is the third prize winner in the Regional Category of the Wingword Poetry Competition 2024 (summer cycle) for his poem ‘था वो बचपन’, receiving a cash prize of INR 10,000. He also known as " Kavi Pathak" in the world of Poetry and Literature is resident of Lucknow, Uttar Pradesh state of Bharat. He is an Electronic & Communication Engineer and started working in the Indian Railways after getting selected in Engineering Services Examinations through UPSC .While working in North Eastern Railways he started writing songs , scripts and poems. He is a spontaneous and creative poet who can write over any topic within minutes.