अब तो उड़ना सिख | Akanksha

क्या रोके तुझे उड़ने से रे पंछी,

क्यो न तोड़े तु पींजरे को।।

पायल जो बन गई है बेड़ियां तेरी,

क्यों न खुद को अब झकझोरे तू।।

रौशनी तो साथ चलती थी तेरे,

रास्ता कैसे भटकी तू अंधेरे में।।

क्यों न करे तू यकीन खुद पे,

रिश्ते हैं सारे बेईमानी के।।

आंखें तो खुली है न तेरी,

क्यों धकेले तू खुद को धुंध में।।

क्या उड़ना भूल गई है तू,

कोशिश तो करना सीख।।

सामने मंजिल है तेरी,

गिर कर उठना तो सिख।।

क्या रोके तुझे उड़ने से रे पंछी,

अब तो उड़ना सिख।।