यूँ तो कई बार हुआ है यह इश्क़,
पहला स्वयं से,
फिर अपने परिजनों से,
उन नयनों से,
थी जो माया से सुसज्जित,
थी जिनमें मंत्रमुग्ध करने की अपार क्षमता |
उस काया से,
जिसके स्पर्श मात्र से ही सिहरन सी दौड़ जाये,
उन हाथों से,
जो किसी वृक्ष की शाखाओं सी प्रतीत हों,
छलावा देती हों आत्मिक सुकून का,
पाखंड रचती हो अदभुद आनंद के प्राप्ति का,
उन तमाम चीज़ों से जो हो सकती हैं नष्ट,
ऐसा इश्क़ कई बार हुआ है |
ऐसा इश्क़ कई बार हुआ है,
हर उम्र के पडाव पर हुआ है,
अपने अंतर्मन की सीमाओं को लांघने की धृष्टता में,
गर्जना के साथ हुआ है,
ऐसा भ्रमित करने वाला इश्क़,
कई बार हुआ है |
रूठना, मनाना, वायदे, कसमें,
तमाम मसले थे इसमें,
बस, नहीं थी मिठास शहद की,
जो भर देती घड़ा अंतर्मन का |
ऐसे ही ऊहापोह के परिप्रेक्ष्य में तुम आए,
और, जैसे ही तुम आए,
वास्तविक इश्क़ की तृष्णा मिट गई |
अनुभव हुआ असीम सुरक्षा का,
लगा जैसे, गूँज उठी हो हृदय में, मीठी ध्वनि संतूर की,
वह मखमली गोद मिल गई हो,
जिस पर सिर टिकाते ही सांसारिक जटिलताओं से उत्पन्न थकावट लुप्त हो जाए,
शांत हो जाए वह मन के उद्वेलित सागर,
जिसमें बेचैनियों की उमड़ा करती थी लहरें,
इस बार कुछ इस प्रकार का शाश्वत इश्क़ हुआ था |
यू तो तुम्हारे शरीर का स्पर्श न था,
फिर भी मन के तार जुड़े से लगे,
लगा जैसे सदियों और जन्मों का नाता है,अटूट सम्बंध है,
तुम्हारा माथा प्रतीत होता एक चमकते सूर्य सा,
जिसकी किरणों में भरा हो ज्ञान और अनंत प्रेम का भंडार,
तुम्हारे नेत्रों में था एक चुंबकीय आकर्षण,
जो अनायास ही हृदय को खींचता अपनी ओर,
तुम्हारी मुस्कान में थी वो शीतलता, वो आश्वासन,
जिसे देख यह एहसास होता कि तुम मैं हूँ और मैं तुम,
संपूर्णता का था यह एहसास,
एकीकरण का था यह एहसास |
समझने में हूँ आज लेकिन असमर्थ,
कहाँ हो गई त्रुटि,
कहा चूक गया,
क्यूँ चट्टान सा मज़बूत विश्वास, डगमगा गया,
क्या वह पूर्ण मनोयोग से किया गया इश्क़ सच्चा नहीं था,
मन मनाने को कतई तैयार नहीं |
हाँ, परंतु इस इश्क़ की मीठी प्रेरणादायी यादें हैं ज़रूर,
जो करती हैं उत्साहवर्धन निरंतर,
कि तुम्हें पुनः प्राप्त कर सकूं,
तुम्हें दोबारा जान सकूं,
तुममें फिर से हो सकूं तल्लीन,
और कस कर जकड़ सकूं,
बाहुबल से नहीं,
ब्लकि, इश्क़ की दीवानगी से ||