अक्सर हमें लगता है ,
कि फिल्मों की तरह, ज़िन्दगी में भी।
अंत में सब ठीक हो ही जाता है।
हम जो चाहते हैं,
वो हमें मिलने लगता है।
पर कोई ये, सिखाता ही नहीं,
कि ये सब , यूँही तो ठीक नहीं होगा।
कभी-कभी ये ज़िंदगी,
सिर्फ इंतज़ार में ही गुज़र जाती है।
इंतज़ार, उस वक़्त का ,
जब सब ठीक हो जाता हैं ।
या, हो सकता है,
जो अब है, वो ही हमेशा रहे।
ये दिन,
ये रात,
ये वक़्त।
कभी बदले ही ना ?
इसी तरह पल - पल,
वक़्त की आँधी में ,
ज़िंदगी का हर पड़ाव,
यूँही बह जाएँ !
और रह जाए ,
वो आधी ज़िन्दगी !
जो बचा कर रखीं थी ,
उन अधूरे ख़्वाबों के लिए !
पर ठीक है ना ,
शायद, ज़िन्दगी ऐसी ही होती होगी !
जहाँ सब कुछ तो नहीं ,
पर कुछ-कुछ तो मिल ही जाता हैं !
जिसमें आधे-अधूरें ख़्वाबों को ,
साँसें मिल जाती हैं !
- रीमा सिंह